Friday 15 May 2015

From poet to  poetic listener

दोस्तों, मे  एक  इंसान  हूँ. और मेरी जिद मेरी इंसानियत है.
शायद  यह  कहना  ठींक  न  होगा  के  ग़ज़ल   मैंने  लिक्खी  है . शायद  यह  लिखवाइ  गइ   है   किसी  इंसान  किसी शख्स   ने  मजबूर  किये  है  मुजह्को .
इंसान   की  जिंदगी  एक  खुली  किताब   के  तरेह  है   अगर  वो  उसमे  कुछ  लिखना  चाहे  तो. इंसान  की   जिंदगी  एक  बंद  किताब  की  तरेह  है  अगर  वो  कुछ  भी  न  सुन्ना  चाहे  तो,  कुछ  भी  लिखना  चाहे  तो . वक़्त -बा -वक़्त   यह   समां  बदलता  है  के  कब  आप  अपनी  किताब -ऐ-जिंदगी  खुली  करते  हो  कब  उसे  बंद  करते  हो . ज़ाहिर  है  ग़ज़ल  लिखा  जाना  या  ग़ज़ल  लिखवाया  जाना  एक  ऐसे  आलम  की  बात  है  जब  बहुत  कुछ  हो  रहा  है . कुछ  आप  इसलिए  लिखते  हो  के  आप  कोई  एक  फला फला   बात  बखूबी  समझते  है . कुछ  आप  इसलिए  लिखते  हो  के  आप  अपने  आपको  कुछ  समझाना  चाहते  हो . और  कुछ  आप  वो  लिखते  हो  जो  आप  को  समजहना  नामुमकिन  है.  और इसलिए  आरजू  तलब  आप  उसे  लोगो  के  बिच  लाने   कोशिश   करते  हो  के  किसी   तरेह  यह  मुब्तला  दुरुस्त   हो . दोनो  या  यूँ  कहिये  के  सारी   सूरतों  में  लिखना, कहना  एकदम  मुनासिब  बात  हो  जाती  है  एकदम  ज़ाहिर  सी  बात  हो  जाती  है . इसलिए   मै   खुद  यह  समझूंगा  के  ‘जिद  की  शायरी ’ का  आलम  देखकर  इसे  किसी  भी  तरह  से  एक  ‘शायर   की   शायरी ’ न  समझ  इसे  अगर   एक  ‘इन्सान  की  शायरी ’ का  खाना  दिया  जाये  तो  अच्छा  होगा.   शायर  की   शायरी   वक़्त-बे -वक़्त  होती  है . उसके पास   हर  मंज़र  हर  मंजूर-ऐ- दामन   है  लिखने  के  लिए . इंसान  की  शायरी  हया  और  ज़माना -ऐ-खौफ-ऐ-बसर  शायरी  होती  है . उसे  बयां  करने  का  तरीका  बहुत  हल्का  और  बहोत  शर्मिला  होता  है . इसलिए मै पढ़ने  वालोंकी  सबसे  पहले  इजाज़त  चाहूँगा  और  फिर  उनसे  गुजारिश  करूँगा  के  ‘जिद  की  शायरी ’ में  वो  कोई शायर नहीं  ढूंढे  बल्कि  एक  इंसान  ढूंढे . मेरे  ख्याल  से  लाखो इन्सानोमें  एक  कोई शायर  होता  है  लेकिन  इस  ज़मानेमे  में  शायद  ही  कोई  शख्स  हो  जिसने  ज़िद  न  की  हो . इसलिए  आप  सबको  यह  बात  भी  मंज़ूर  रहेगी  के  जिद  अक्सर  बहोत  तनहा  होती  है   उस तनहाइ   को  हल्का  करनेके  लिए  यही   मुनासिब  होगा  के  मेरी  जिद  आप  भी  आपकी  जिद  समझे .
खुदा  हाफिज
ज़िद

No comments:

Post a Comment